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कानपुर जंक्शन पर तीन दिन से पड़ी मेरे पापा की लाश सड़ चुकी है, आखिर कब होगा पोस्टमॉर्टम ?
जनज्वार की रिपोर्ट के अनुसार । श्रमिक ट्रेन से एक भरा पूरा परिवार मुम्बई से आजमगढ़ जाने के लिए निकला था। बीच रास्ते मे एक पिता और पति की हालत इतनी खराब हो गई कि वह काल के गाल में समा गया। बीच रास्ते उसके बच्चों ने झांसी और कानपुर में ट्रेन की चैन खींचकर मदद मांगी पर किसी ने भी उन्हें मदद करना तो दूर पानी तक नहीं पिलाया। नतीजतन परिवार के मुखिया ने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया।
तीन दिन बीत जाने के बाद भी पोस्टमार्टम न होने पर रिहाई मंच ने जनज्वार से सम्पर्क किया, जिसके बाद हमने इस मामले की पूरी पड़ताल की। पड़ताल में सारी बातें किसी भी संवेदनशील आदमी को झकझोर सकती थीं। इसका जो निष्कर्ष निकला वो ये कि सरकार जिंदा मजदूर का सम्मान नहीं कर सकती तो कम से कम मरने के बाद इस तरह का व्यवहार तो न करे।
45 वर्षीय राम अवध चौहान अपनी 69 वर्षीय मां सितावी देवी, 41 वर्षीय पत्नी कौशल्या तीन बच्चों 18 वर्षीय कन्हैया चौहान, एक 17 वर्षीय बेटी ममता व एक 14 वर्षीय पुत्र कुलदीप चैहान के साथ मुम्बई से आजमगढ़ के लिए ट्रेन से निकले थे। राम अवध हार्ट के मरीज थे जिसके चलते रास्ते मे उन्हें खाना पानी न मिलने से तबियत बिगड़ी। बच्चों ने ट्रेन की चैन खींची। ट्रेन रुकी तो जरूर पर उन्हें ट्रेन की चैन खींचने के जुर्म का हवाला देकर धमकाया गया और आगे चलता कर दिया गया।
रिहाई मंच ने आज़मगढ़ के राम अवध चौहान की मृत्यु के तीन दिनों बाद भी पोस्टमार्टम न होने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि दुःख की इस घड़ी में सरकार उनके परिजनों को तसल्ली देती लेकिन ठीक इसके विपरीत उन्हें कानपुर रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया गया। रिहाई मंच ने कहा गया कि श्रमिक ट्रेनों से आ रहे पूर्वांचल के जिन पांच मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है तत्काल उनका पोस्टमार्टम करवाकर दाह संस्कार करवाया जाए। रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव, बांकेलाल, अवधेश यादव और विनोद यादव ने मृतक रामअवध चौहान के परिजनों से मुलाक़ात की।
आजमगढ़ के प्रवासी मृतक मजदूर राम अवध चौहान के बेटे ने ‘जनज्वार’ को बताया कि 26 मई की शाम 5.30 बजे उनके पिता की मृत्यु हुई थी। आज तक उनका पोस्टमार्टम नहीं हो सका है। वे कुछ भी बता पाने कि स्थिति में नहीं हैं। हमें बताया जा रहा है कि यहां कोरोना की जांच नहीं होती और इसी वजह से पोस्टमार्टम भी नहीं हो पा रहा है। जिसके काफी परेशान हैं।
वे अपनी मां, भाई-बहन के साथ पिछले तीन दिनों से कानपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर रहने को मजबूर हैं। वे भूख-प्यास से बेहाल हैं लेकिन कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा है। राम अवध का पढ़ाई कर रहा 18 वर्षीय पुत्र कन्हैया चौहान सिस्टम के रवैये से बेहद परेशान और चिढ़ा हुआ है। वह कहता है कि लापरवाह सिस्टम ने उसके पिता की हत्या की है।
रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मृतक प्रवासी मजदूरों का दो दो-तीन तीन दिन तक पोस्टमार्टम ना होना और इस दुख की घड़ी में भी उन्हें स्टेशन पर रहने को मजबूर होना बताता है कि सरकार के पास मजदूरों के लिए कोई नीति नहीं है। कहां तो उन्हें सांत्वना देनी चाहिए थी पर इससे बिल्कुल अलग ये बात सामने आ रही है कि उनके खाने-पीने तक का कोई उचित प्रबंध नहीं है।
रिहाई मंच प्रतिनिधिमंडल से राम अवध चौहान के भाई दिनेश चौहान ने कहा कि गर्मी के कारण राम अवध चौहान का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। उन्होंने अपने कपड़े उतार दिए थे, क्योंकि उनका शरीर बहुत गर्म हो गया था। उनको दिक्कत महसूस होने लगी तो उनके बेटे ने चेन खींची, लेकिन ट्रेन नहीं रुकी। उन्होंने रेलवे हेल्पलाइन नंबर भी डायल किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली।
मुंबई के साकीनाका में राजमिस्त्री का काम करते हुए 45 वर्षीय राम अवध अपने दो बेटों, पत्नी, बेटी और सास के साथ बस से झाँसी आए। झांसी में भी उन्होंने इलाज के लिए हाथ-पांव मारे पर सफल नहीं हुए। झांसी से वे आजमगढ़ के लिए मंगलवार 26 मई को चले और कानपुर आते आते दम तोड़ दिया।
राम अवध के पुत्र कन्हैया ने आरोप लगाया है कि बस से जब वे झांसी पहुंचे तब से लेकर झांसी से निकलने तक उन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिला। झाँसी से जब वे चले तो ट्रेन में पूड़ी-सब्ज़ी और पानी का एक-एक पाउच मिला। मध्यप्रदेश के गुना में सोमवार की शाम उन्होंने आखिरी बार भोजन ठीक से किया था। सही से भोजन न मिलने की वजह से शूगर की दवा भी नहीं ले पा रहे थे। 45 मिनट से अधिक की देरी के बाद डॉक्टर कानपुर स्टेशन पर उनके पिता की जांच करने पहुंचे।
मृतक राम अवध की पुत्री 17 वर्षीय ममता रोते हुए बताती हैं कि कैसे ट्रेन में उनके पिता की हालत खराब हुई। उनने बहुत कोशिश की मदद लेने की, पर किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। अपने पिता की मौत के बाद सभी बच्चे लगभग यतीम हो चुके हैं। एकमात्र उनका ही सहारा था जो उन्हें और पूरे परिवार को किसी तरह जिंदा रक्खे हुए थे। ममता कहती हैं कि उनके पिता बेहद जीवट व्यक्ति थे। इतनी कड़ी परेशानियों में भी वो बच्चों व पूरे परिवार को जीवटता का पाठ पढ़ाते सिखाते रहते थे। उनकी मौत के बाद सभी आधे से अधिक टूट चुके हैं।
मृतक के परिजनों का कहना है कि उनके पिता के पास ढाई महीने से कोई काम नहीं था। ऐसे में आज़मगढ़ लौटने के अलावां कोई विकल्प नहीं था। रामअवध के भाई दिनेश कहते हैं कि कुछ दिनों पहले ही उनका परिवार मुम्बई शिफ्ट हुआ था और तीनों बच्चों कन्हैया, कुलदीप, ममता सहित पत्नी कौशल्या काम खत्म हो जाने के बाद बड़ी दयनीय हालत में आजमगढ़ लौट रहे थे।
स्टेशन पर पूरे परिवार से मिलने के बाद ‘जनज्वार’ संवाददाता जब पोस्टमॉर्टेम हाउस में मृतक रामअवध के भाई दिनेश से मिला तो उन्होंने सिस्टम पर अपने भाई की मौत का आरोप लगाते हुए कहा कि तीन दिन से उनके भाई का परिवार तथा बच्चे स्टेशन पर भूखे-प्यासे पड़े हुए हैं। वो खुद आजमगढ़ से आकर अपने भाई की लाश का पोस्टमॉर्टेम करने के लिए यहां पड़े हुए हैं। कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। पहले कह रहे थे कि कोरोना जांच आ जाये तब पीएम करेंगे, अभी तक जांच नहीं आयी है। हमारे पास पैसे खत्म हो रहे हैं। कहीं भी कुछ खाने पीने के लिए भी सोचना पड़ता है कि खाएं या न खाएं। सिस्टम इतना सड़ चुका है कि इनके नाम से ही अब उबकाई आने लगी है।
जनज्वार की रिपोर्ट के अनुसार । श्रमिक ट्रेन से एक भरा पूरा परिवार मुम्बई से आजमगढ़ जाने के लिए निकला था। बीच रास्ते मे एक पिता और पति की हालत इतनी खराब हो गई कि वह काल के गाल में समा गया। बीच रास्ते उसके बच्चों ने झांसी और कानपुर में ट्रेन की चैन खींचकर मदद मांगी पर किसी ने भी उन्हें मदद करना तो दूर पानी तक नहीं पिलाया। नतीजतन परिवार के मुखिया ने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया।
45 वर्षीय राम अवध चौहान अपनी 69 वर्षीय मां सितावी देवी, 41 वर्षीय पत्नी कौशल्या तीन बच्चों 18 वर्षीय कन्हैया चौहान, एक 17 वर्षीय बेटी ममता व एक 14 वर्षीय पुत्र कुलदीप चैहान के साथ मुम्बई से आजमगढ़ के लिए ट्रेन से निकले थे। राम अवध हार्ट के मरीज थे जिसके चलते रास्ते मे उन्हें खाना पानी न मिलने से तबियत बिगड़ी। बच्चों ने ट्रेन की चैन खींची। ट्रेन रुकी तो जरूर पर उन्हें ट्रेन की चैन खींचने के जुर्म का हवाला देकर धमकाया गया और आगे चलता कर दिया गया।
आजमगढ़ के प्रवासी मृतक मजदूर राम अवध चौहान के बेटे ने ‘जनज्वार’ को बताया कि 26 मई की शाम 5.30 बजे उनके पिता की मृत्यु हुई थी। आज तक उनका पोस्टमार्टम नहीं हो सका है। वे कुछ भी बता पाने कि स्थिति में नहीं हैं। हमें बताया जा रहा है कि यहां कोरोना की जांच नहीं होती और इसी वजह से पोस्टमार्टम भी नहीं हो पा रहा है। जिसके काफी परेशान हैं।
रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मृतक प्रवासी मजदूरों का दो दो-तीन तीन दिन तक पोस्टमार्टम ना होना और इस दुख की घड़ी में भी उन्हें स्टेशन पर रहने को मजबूर होना बताता है कि सरकार के पास मजदूरों के लिए कोई नीति नहीं है। कहां तो उन्हें सांत्वना देनी चाहिए थी पर इससे बिल्कुल अलग ये बात सामने आ रही है कि उनके खाने-पीने तक का कोई उचित प्रबंध नहीं है।
मुंबई के साकीनाका में राजमिस्त्री का काम करते हुए 45 वर्षीय राम अवध अपने दो बेटों, पत्नी, बेटी और सास के साथ बस से झाँसी आए। झांसी में भी उन्होंने इलाज के लिए हाथ-पांव मारे पर सफल नहीं हुए। झांसी से वे आजमगढ़ के लिए मंगलवार 26 मई को चले और कानपुर आते आते दम तोड़ दिया।
मृतक राम अवध की पुत्री 17 वर्षीय ममता रोते हुए बताती हैं कि कैसे ट्रेन में उनके पिता की हालत खराब हुई। उनने बहुत कोशिश की मदद लेने की, पर किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। अपने पिता की मौत के बाद सभी बच्चे लगभग यतीम हो चुके हैं। एकमात्र उनका ही सहारा था जो उन्हें और पूरे परिवार को किसी तरह जिंदा रक्खे हुए थे। ममता कहती हैं कि उनके पिता बेहद जीवट व्यक्ति थे। इतनी कड़ी परेशानियों में भी वो बच्चों व पूरे परिवार को जीवटता का पाठ पढ़ाते सिखाते रहते थे। उनकी मौत के बाद सभी आधे से अधिक टूट चुके हैं।
स्टेशन पर पूरे परिवार से मिलने के बाद ‘जनज्वार’ संवाददाता जब पोस्टमॉर्टेम हाउस में मृतक रामअवध के भाई दिनेश से मिला तो उन्होंने सिस्टम पर अपने भाई की मौत का आरोप लगाते हुए कहा कि तीन दिन से उनके भाई का परिवार तथा बच्चे स्टेशन पर भूखे-प्यासे पड़े हुए हैं। वो खुद आजमगढ़ से आकर अपने भाई की लाश का पोस्टमॉर्टेम करने के लिए यहां पड़े हुए हैं। कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। पहले कह रहे थे कि कोरोना जांच आ जाये तब पीएम करेंगे, अभी तक जांच नहीं आयी है। हमारे पास पैसे खत्म हो रहे हैं। कहीं भी कुछ खाने पीने के लिए भी सोचना पड़ता है कि खाएं या न खाएं। सिस्टम इतना सड़ चुका है कि इनके नाम से ही अब उबकाई आने लगी है।