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YesBank ही नहीं चपेट में Bank unions भी शिकार हुए

YesBank ही नहीं चपेट में Bank unions भी शिकार हुए 
Bank unions generation problem का शिकार हो चुकी हैं। सबसे बड़ी Union AIBEA हो या अन्य कोई। वर्तमान बैंकिंग में एक बहुत बड़ा हिस्सा चालीस साल के आसपास का है और उतना ही या थोड़ा कम 30 के आसपास है। इनके साथ यूनियनों के अन्दर नये नेताओं की अलग कार्यशैली की वजह से बुजुर्गों के अन्दर एक असुरक्षा (Insecurity) बन गई है और उन्होंने लामबन्दी करनी शुरू कर दी है। बुड्ढे नेता चाहे वे बैंकिंग यूनियनों के हो या राजनीति की बिसात के, वे जितने लामबद्ध है उतने युवा नेता नहीं है। इसका एक कारण तो यह है कि वे वैचारिक रूप से कमजोर है। कुछ यूनियनों ने नेतृत्व में इस चीज को दबा कर नये नेताओं को आगे कर तो दिया है परंतु उस पंगुता के साथ कि वे खूसट नेताओं की हां में हां मिलाते रहे। 

 
YesBank ही नहीं चपेट में Bank unions भी शिकार हुए 
यूनियनों के बुढ़े नेता बहुत चालबाज हैं और युवा नेता वैचारिक रूप से दिशाहीन। इस जेनेरेशन प्रोब्लेम ने यूनियनों को अन्दर से कमजोर कर दिया है। भलेई वे संगठन का बांस पीटते रहे हो। अगर नये परिवर्तन को पहचान कर समस्याओं को सुलझाया नही गया तो बैंकिंग इतिहास में यूनियनों की जत्थेदारी और जुझारूपन इतिहास की गाथा बनकर रह जायेगी। यूनियनों के पास फण्ड की कमी नहीं है, जिसे वे धरना प्रदर्शनों में निर्बाध रूप से बहाते है, परंतु अपने सदस्यों के लिए वे अभी तक जीवन बीमा तक की लाभकारी योजना नहीं बना पाए। नेताओं की Dictatorship is an authoritarian personality (तानाशाही एक अधिनायकवादी व्यक्तित्व है)  से कम नहीं है। नवोदित वी बैंक यूनियन भी उसी की चपेट में है। 
लोग कहते हैं क़ातिल को मसीहा कहिये 
कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिये

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