नई दिल्ली : देश में भुखमरी और बेरोजगारी की पोल खुल गई है, भुखमरी से बचने के लिए लोग भारी संख्या में पलायन कर रहे हैं । साहब के अपील पर लोग ताली, थाली, घंटी, संख, ड्म सब बजाए, लेकिन जब पेट पर लात पड़ती है, तो अच्छे अच्छे बिलबिला जाते हैं । साहब अपील कर रहे हैं जो जहाँ हैं वहीं रहें, घरों में रहें, कोरोना से ज्यादा खतरा भुखमरी से है । लोग जानते हैं सरकार के तरफ से किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद नही, लॉकडाउन को आज चौथा दिन है । सरकार के तरफ से अभी तक लोगों को किसी तरह की कोई मदद नही पहुंची. भुखमरी से बचने के लिए लोग भारी तादाद में पलायन कर रहे हैं ।
नमस्ते ट्रंप, गंगा आरती, स्टेच्यु के लिए लाखो की भीड़ इकट्ठी करने के लिए तो माइक्रो प्लानिंग करते है, फ़्री में बसे दौड़ाते है, फूड पैकेट बाटते फिर लॉकडाउन के पहले, इंन मजदूरों को घर तक भेजने के लिए आप कोई प्लानिंग क्यों नहीं कर सके? एक बच्चा भी समझ सकता है ।. कि, 21 दिन बिना खाए पिए घर में कोई नहीं रहे सकता। इतनी छोटी सी बात आप में से किसी भी बड़े दिमाग वालो की समझ में क्यों नहीं आई? या फिर आपका दिमाग सिर्फ खुद के फायदे के लिए ही दौड़ाते है? जनता को घर में रहने के लिए रामायण दिखाने का विचार आता है, फिर इसी जनता को दो वक़्त का खाना घर घर पहुंचाने के विचार क्यों नहीं आता? जनता रास्ते पर इसीलिए है की भूखी है, रामायण से पेट नहीं भरता ।
आप अपने घर मे पढ़े लिखे बाप दादाओं को वायरस की गंभीरता के बारे में बता रहे, फिर भी उन्हें ये समझने में काफ़ी वक़्त लग रहा कि बार बार हाथ धुलना क्यो ज़रूरी है । आपके रिश्तेदार जो अच्छी अच्छी पोस्ट पर है, वो कोरोना को लेकर ऐसी बेवकूफ़ी भरी बातें WhatsApp पर भेज रहे है । आप खुद जो अपने आपको इंटेलिजेंट समझते है इसे हॉलीवुड फिल्मो वाली कॉन्सिप्रेसी से जोड़ रहे है, जबकि नेता ऐसी बयानबाज़ी करके अपनी जनता को मूर्ख बना रहे ताकि दोष एक दूसरे पर मढ़ा जा सके। शहरों के घरों में रामायण और कुरान में बाल मिलने की मूर्खता को इधर उधर फैला रहे है. अब सोचिये की वो गरीब तबका जिसने पढ़ाई ही नही की, जिसने दिन भर फावड़ा चलाया और रात में उसी फावड़े को धुलकर उसपर खाना खा लिया, उनसे आप उम्मीद लगाते है. कि वो शहर न छोड़े, यानी आप पढ़ लिखकर अफ़वाहो में जीये और वो इतने समझदार हो जाये कि इस उम्मीद में रुक जाए, सरकार खाना देगी, याद रखिये वो लोग चलकर आ रहे है. तो मीडिया में उनकी दिक्कतों की ख़बर है. वरना कहीं खाने के इंतिज़ार में पड़े होते औऱ शायद भूखे मर जाते, ये खाया पीया अघाया वर्ग अपने चोंचलों में मस्त रहता।
बहुत लोग कहते है कि ये वक़्त राजनीति का नही है सच तो ये है कि अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता के चलते सच को छुपाना और सच बोलने से परहेज़ करना भी राजनीति है। इंसान पलायन केवल दो वजहों पर करता है एक डर, दूसरा भरोसा न होना, डरते हम सभी है. पर हमे भरोसा है, मगर याद रखिये भरोसा हमे सरकार पर नही बल्कि खुदपर है. क्योंकि हमने इतना संचित कर रखा है कि भरोसा है। हिम्मती है आप तो अपने घर का सारा राशन हटा दे, सारा पैसा इस शर्त पर उधार दे दे कि हमे जबतक कोरोना है इसकी ज़रूरत नही फिर मैं आपके भरोसे को देखूंगी, जेब मे जब पैसे होते है तो कॉन्फिडेंस खुद बख़ुद आ जाता है। एक मज़दूर को पांच लाख दे दो, जो पुलिस वाले डंडे मार रहे वो घर तक पहुंचा आएंगे, डर को समझिये अगर आपका मकान पक्का बना है तो आप चाय पीते हुए बारिश का मज़ा ले सकते हैं. लेकिन जिनका कमज़ोर और कच्चा मकान है वो बेचैन होंगे।