फोटो सौजन्य TheWire |
दुनियां की सबसे बड़ी पार्टी BJP ने नोटबंदी के बाद, दो साल के अंदर अपने लिए 600 से अधिक नए बहुमंज़िला कार्यालय बनवाये ! पर देश भर में 135 करोड़ लोगों के लिए कितने अस्पताल बने? युवाओं के लिए कितने विश्वविद्यालय बने? ऐसे सवालात पूछने वालों को देशद्रोही की श्रेणी में रखा गया । तब रवीश कुमार ने बीजेपी को #बहुमंज़िला_जनता_पार्टी लिखा था ।
मेनस्ट्रीम मीडिया ने इसकी चर्चा नहीं की, न ही ये सवाल पूछना ठीक समझा गया कि सैकड़ों बहुमंजिला कार्यालय कैसे बनवाए गए? पैसा कहां से आया? न ये ही सवाल पूछा गया कि अपने कार्यालय तो बनवा लिए, अस्पताल कितने बनवाए? भव्य राममंदिर बनाने के नारों के बीच भव्य भाजपा कार्यालय बन गए । मंदिर चुनाव का इंतजार कर रहा है ।
2014 के चुनाव में AIIMS जैसे कई अस्पतालों का वादा था, आज तक वादा ही है । क्या यह नहीं जानना चाहिए कि बीजेपी के पास कहां से इतने पैसे आए? बीजेपी देश की समस्याओं से निपटने के लिए कभी RBI से वसूलती है, कभी जनता से वसूलती है । कोरोना आपदा आई है तो प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय राहत कोष के बावजूद, नया कोष बना दिया है और पैसे दान करने की अपील कर रहे हैं, जबकि अभी प्राथमिक स्तर की भी व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं ।
अगर सरकार का खजाना इस तरह खाली है तो सरकार में बैठी पार्टी ने सैकड़ों दफ्तर कैसे बनवा लिए? वह पैसा कहां से आया था? कार्यालय बने तो बने, कितने राज्यों में भाजपा ने अस्पताल बनवाए? कितने स्कूल बने? कितने विश्वविद्यालय बने? जहां एक अस्पताल बनना नामुमकिन रहा, वहां 600 से अधिक मुख्यालय कैसे बने होंगे?:
"आप किसी ऐसी पार्टी के बारे में जानते हैं जिसने दो साल से कम समय के भीतर सैंकड़ों नए कार्यालय बना लिए हों? भारत में एक राजनीतिक दल इन दो सालों के दौरान कई सौ बहुमंज़िला कार्यालय बना रहा था, इसकी न तो पर्याप्त ख़बरें हैं । और न ही विश्लेषण । कई सौ मुख्यालय की तस्वीरें एक जगह रखकर देखिए, आपको राजनीति का नया नहीं वो चेहरा दिखेगा जिसके बारे में आप कम जानते हैं ।"
-Krishna kant (सतंत्र पत्रकार)
"आप किसी ऐसी पार्टी के बारे में जानते हैं जिसने दो साल से कम समय के भीतर सैंकड़ों नए कार्यालय बना लिए हों? भारत में एक राजनीतिक दल इन दो सालों के दौरान कई सौ बहुमंज़िला कार्यालय बना रहा था, इसकी न तो पर्याप्त ख़बरें हैं । और न ही विश्लेषण । कई सौ मुख्यालय की तस्वीरें एक जगह रखकर देखिए, आपको राजनीति का नया नहीं वो चेहरा दिखेगा जिसके बारे में आप कम जानते हैं ।"
-Krishna kant (सतंत्र पत्रकार)