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धार्मिक सहित्य, इतिहास, मुहावरों और कहावतों के जरिये भारत के आदिम जातियों को नीच घोषित करने का कारण धर्म और समाज व्यवस्था नहीं था, बल्कि इसके पीछे अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र था।
तेली, कुम्हार, लुहार,बड़ई,भुर्जी,सुनार,कलार,कलवार,बारी,कोरी,खटीक,सिकलगर,कलईगर,पीलवान,बंजारा,मंसूरी,कुरैशी,राइन/बागवान,बुनकर इन जैसे तमाम जातियां के अंदर अपनी मूल पहचान और पेशों के प्रति घृणा भाव पैदा किया। इस से इन जातियां पर दो प्रमुख दुष्प्रभाव हुए।
पहला इन्होंने अपने परम्परागत पेशों को छोड़ा, जिससे ये आर्थिक रूप से कमजोर हुए। इनके परम्परागत पेशों में अनावश्यक रूप से शरणार्थियों की सरकारों ने कानून घुसेड़े।फिर इन शरणार्थियों ने इनके पेशों पर कब्ज़ा किया।
दूसरा अपनी मूल पहचान छुपा कर अलग-अलग फर्ज़ी पहचान को ओढ़ा जिससे ये जातियां राजनैतिक रूप से उन शरणार्थियों के पिछलग्गू बन गए जिन्होंने ये षड्यन्त किया था।
-विकास तेली, सामाजिक कार्यकर्ता (आगरा, यूपी)
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