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24 साल की मेडिकल स्टूडेंट हादिया न्यायालय की नजरो में बालिग़ नहीं है -मो. जाहिद


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देश के न्यायालयों से मुसलमानों की खत्म हो रही हैं उम्मीदें?
By Mohd. Zahid
भारत की अदालतों में मुसलमानों के लिए न्याय नहीं है , यह 1 नहीं 100 बार सिद्ध हो चुका है , सिर्फ़ अदालतें ही नहीं , व्यवस्था में भी मुसलमानों के लिए न्याय नहीं है , केवल उत्तर प्रदेश की बात करूँ तो 4 महीने पहले चुन कर आई योगी सरकार केवल और केवल मुसलमानों के विरुद्ध फैसले ले रही है और उसमें कम से कम 5 फैसले तो केवल और केवल मदरसों के विरुद्ध है।

देश के मुसलमानों की आस उच्चतम न्यायालय से भी उम्मीदें खत्म होती जा रही हैं। जब भी किसी मामले में एक पक्ष मुसलमान या इस्लाम होता है न्यायालय पक्षपाती होकर संविधान की बजाए मनु स्मृति के आधार पर फैसले देनें लगती हैं।

यह अघोषित रूप से देश के मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक समझ लिए जाने का प्रतीक है और भारत की पूरी व्यवस्था द्वारा मुसलमानों के प्रति किया जा रहा दोयम दर्जे का व्यवहार है।

उच्चतम न्यायालय दो बालिग लड़के-लड़की को लिव- इन रिलेशनशिप में रह कर बिना विवाह किए शारीरिक संबंध बनाने को वैध घोषित करता है, उच्चतम न्यायालय इस शारीरिक संबंधों से पैदा हुए बच्चे को वैध घोषित करता है, उच्चतम न्यायालय विवाह पुर्व दो प्रेमी-प्रेमिकाओं के शारीरिक संबंधों को वैध घोषित करता है, उच्चतम न्यायालय दो पुरुषों के बीच के शारीरिक संबंधों को भी वैध घोषित करता है, उच्चतम न्यायालय दो महिलाओं के बीच शारीरिक संबंधों को भी वैध घोषित करता है, उच्चतम न्यायालय दो बालिग पुरुष-पुरुष और महिला-महिला के बीच विवाह को भी वैध घोषित करता है और यहाँ तक कि यदि दो बालिग पुरूष और महिला आपसी सहमति के यूँ ही मज़ा लेने के लिए शारीरिक संबंध बनाते हैं तो उच्चतम न्यायालय उसे वैध घोषित करता है।

उच्चतम न्यायालय की नज़र में यह सब इन लोगों के मूल अधिकारों में आता है क्युँकि यहाँ किसी भी उदाहरण में मुसलमान एक पक्ष आपको नहीं मिलेगा , परन्तु जैसे ही अदालत के सामने एक पक्ष मुसलमान होगा उसके अंदर मनु महाराज प्रवेश कर जाते हैं और संविधान की मोटी मोटी आइसीपी और सीआरसीपी की कानूनी किताबों की जगह मनुस्मृति ले लेती है।

फिर उस मुसलमान के मौलिक अधिकार की पुल्ली बनाकर अदालत उसी में घुसेड़ देती है , उच्च न्यायालय मैरेज ऐक्ट में रजिस्टर्ड दो बालिग लोगों के विवाह को अवैध घोषित कर देती है और उच्चतम न्यायालय उसके पीछे एनआईए छोड़ देती है।

24 वर्ष की एक लड़की अपनी मर्ज़ी से विवाह करे तो उसकी जाँच एनआईए करती है और गोरखपुर में एक महीने में 300 बच्चों के मरने की जाँच जिलाधिकारी करता है।

इसे कहते हैं मौलिक अधिकारों की माँ बहन।

दरअसल इस देश में मुसलमानों का ना तो मौलिक अधिकार है ना धार्मिक अधिकार और ना संवैधानिक अधिकार।

तीन तलाक पर महिला के अधिकार के लिए उछल उछल और कूद कूद कर प्रतिदिन सुनवाई करने वाली और फैसला सुनाने वाली सर्वोच्च न्यायालय को 24 वर्ष की एक लड़की के मौलिक और संवैधानिक अधिकार नहीं दिखते।

इसी को दोगलापन कहा गया है , जो एक पक्ष मुसलमान दिखते ही पैदा होने लगता है।

24 वर्षीय मेडिकल स्टुडेंट “हदिया” उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायलय की दृष्टी में बालिग नहीं है और उसे बरगलाया गया है , वह अपनी मर्ज़ी से अपना धर्म नहीं चुन सकती अपना पति नहीं चुन सकती , बाकी देश के लोग बिना विवाह किए कुछ भी करें उसके लिए उच्चतम न्यायालय अनुमति देता है।

यह देखिए हदिया के वैवाहिक संबंध में केरल हाईकोर्ट का फैसला

“24 साल की युवती कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उसका कई तरीके से शोषण किया जा सकता है। चूंकि शादी उसके जीवन का सबसे अहम फैसला होता है इसलिए उनकी शादी का फैसला सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्ता से ही लिया जा सकता है”

हदिया को पिछले 6 महीने से नज़रबंद कर दिया गया है , उसके रजिस्टर्ड विवाह को हाईकोर्ट द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया है , उसका परिवार , संघ , पुलिस , अदालत और प्रशासन उसे प्रतिदिन प्रताणित कर रहे हैं।

जानते हैं क्युँ ? क्युँकि वह पहले “अकिला अशोकन” थी , उसने इस्लाम का अध्ययन किया और मुसलमान बन गयी , उसने एक मुस्लिम को अपना जीवन साथी चुना और भारत की संवैधानिक प्रक्रिया अपना कर उसने कोर्ट में रजिस्टर्ड मैरेज भी की।

इसलिए सर्वोच्च से लेकर उच्च न्यायालय तक की नज़र में ना तो उसे इस देश के संवैधानिक और ना मौलिक अधिकार पाने का हक है ना बालिग होने पर अपना पति चुनने का अधिकार।

योगी की सोच देश की अदालतों में भी चरम पर है।

वहीं एक मुस्लिम युवती विवाह के बाद अपने ब्राम्हण प्रेमी और पति के धर्म हिन्दू धर्म को अपना लेती है तो वह इस देश में सभी व्यवस्थाओं को सहर्ष स्वीकार है। यह लव जेहाद नहीं है।

चाहे उसका ब्राम्हण पति उसके गुप्तांग में बोतल ही क्युँ ना घुसेड़ दे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। मोहम्मद जाहिद सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। सोर्स नेशनल दस्तक)

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