बीजेपी और बीजेपी समर्थक मीडिया के अलावा सभी पार्टियां, बहुजन संगठन के साथ-साथ सोशल मीडिया पर लगातार EVM का विरोध तेजी से बढ़ता ही जा रहा है. EVM विवाद कोई नया विवाद नहीं है. लेकिन फिर भी चुनाव आयोग का EVM को ना बदलना संदेहास्पद बताया जा रहा है. लोग जब EVM को बंद कर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रहे है तब मीडिया EVM में गड़बड़ी नहीं हो सकती यह बता रहा है. इसपर कई दिग्गजों ने कहा कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरुर है. गौरतलब है की माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था के EVM मशीन के साथ VVPT लगाई जाए. लेकिन चुनाव योग ने मा. सवोच्च न्यायालय का आदेश भी नहीं माना यह बात भी संदेहास्पद होने की गवाही कई नेताओं ने दी है. सोशल मीडिया पर सोनी सानी नाम के अकाउंट पर भी कुछ सवाल खड़े किये गए है. वह इस तरह है.
भारत में EVM पर विवाद नया नहीं है लेकिन आयोग इसे बंद क्यों नहीं करना चाहता गंभीर प्रश्न है और संदेहास्पद भी...
EVM यानि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पहला प्रयोगात्मक इस्तेमाल 1982 में केरल के पारावुर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में हुआ था. जन प्रतिनिधित्व कानून-1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर और बैलट बॉक्स का इस्तेमाल हो सकता था. पर आयोग ने पारावुर विधान सभा के कुल 84 पोलिंग स्टेशन में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल किया. इस सीट से कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवान पिल्लै के बीच मुकाबला हुआ. सिवान पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक याचिका दायर करके मशीन के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किए. जब चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट के मशीन दिखाई तो अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया. लेकिन जब पिल्लै 123 वोटों से चुनाव जीत गए तो कांग्रेसी जोस अदालत चले गए और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया. दुबारा हुए चुनाव में जोस जीत गए.
इस फैसले के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया. सन 1988 में कानून में संशोधन करके ईवीएम के इस्तेमाल को कानूनी बनाया गया. वर्ष 1989-90 में निर्मित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोगात्मक आधार पर पहली बार नवम्बर, 1998 में आयोजित 16 विधान सभा क्षेत्रों के चुनाव में इस्तेमाल किया गया. इन 16 क्षेत्रों में से मध्य प्रदेश में 5, राजस्थान में 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में 6 विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्र थे