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बाबरी मस्जिद से पहले भी वहां मस्जिद ही थी, हिन्दू इतिहासकार का खुलासा

राम चबूतरा
हौज की तली और दीवारों पर भी खूब मोटा पलस्तर किया गया है ताकि उससे पानी का रिसाव न हो।

अट्ठारहवीं-उन्नीसवीं सदियों से जुड़ा एक विचित्र साक्ष्य सामने आया है। हौज को कंकड़-पत्थर से और चूने के मसाले से भर दिया जाता है। उसके ऊपर उसी सामग्री से छोटा सा चबूतरा बना दिया जाता है। चबूतरा पौने पांच मीटर गुणा पौने पांच मीटर का है। पहले चबूतर को घेरते हुए और बड़ा चबूतरा बनता है। अब चबूतरा 22 मीटर गुणा 22 मीटर का हो जाता है। इसी के ऊपर राम चबूतरा बनाया गया था। राम चबूतरा बाबरी मस्जिद के पहले फर्श में धंसा हुआ था, जिससे यह संकेत मिलता है कि चबूतरों का निर्माण बाबरी मस्जिद के निर्माण के काफी बाद का होगा।



बाबरी मस्जद परिसर में मिला तीसरा निर्माण, बहुत सारी कब्रें हैं जो बाबरी मस्जिद के उत्तर में भी पायी गई हैं और दक्षिण में भी। ये कब्रें बाबरी मस्जिद के पहले वाले फर्श में धंसी हैं। इससे पता चलता है कि ये कब्रें बाबरी मस्जिद के अपेक्षाक़त बाद के दौर में बनी होंगी। कब्रें उत्तर-दक्षिण दिशा में हैं। कब्रों में अस्थि-पिंजरों का चेहरा पश्चिम की ओर मुड़ा हुआ है, जैसाकि मुसलमानों में रिवाज है।

इस खुदाई में बारी मस्जिद के बाद वाले चरण के साक्ष्य दूसरा फर्श फैलाये जाने के रूप में मिलते हैं। यह फर्श स्तंभ आधारों, कब्रों तथा चबूतरों को ढ़ांपने के बाद, यह फर्श चूना और सुर्खी का बना है। यह मस्जिद के आखिरी ढ़ांचागत चरण का संकेतक है। चूंकि 18वीं सदी के मध्य भाग से पहले राम चबूतरों की मौजूदगी का कोई साहित्यिक या ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है, चबूतरों स्तंभ आधारों तथा कब्रों का फर्श में धंसता हुआ निर्माण, 18वीं-19वीं सदियों का माना जा सकता है। यह ज्ञात ही है कि 1857 से पहले अयोध्या में दंगे हुए थे और इनमें कुछ खून-खराबा हुआ था। बहरहाल, अवध के नवाब के हस्तक्षेप से, दोनों समुदायों के बीच के टकराव को हल कर लिया गया था। इसके बाद सद्भाव बहाल हो गया था और इसके कुछ ही समय बाद, 1857 में हिदुओं और मुसलमानों ने मिलकर सामराजी सत्ता के खिलाफ मोर्चा लिया था। आगे चलकर, 1948 में बाबरी मस्जिद पर जबरन कब्जा किए जाने के बावजूद, 6 दिसंबर 1992 को संघ परिवार की उपद्रवी भीड़ों द्वारा ध्वस्त किए जाने तक, मस्जिद वहां कायम थी। अंत में हम निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं:

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जाने-माने पुरातत्वविद, इतिहासकार और सोशल एक्टिविस्ट डॉ. सूरजभान का 14 जुलाई 2010 को रोहतक (हरियाणा) में निधन हुआ। उनका जन्म 1 मार्च 1931 को मिंटगुमरी (फ़िलहाल पाकिस्तान में) हुआ था। वे इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, अर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के केन्द्रीय सलाहकार मंडल और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् की कार्यकारिणी केसदस्य रहे। 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दिए जाने के बाद उसके मलबे में से मंदिर के तथाकथित अवशेष ढूंढ़ने का दावा कर रहे आरएसएस प्रायोजित कथित पुरातात्विकों से उन्होंने लोहा लिया और वे इस मसले में लखनऊ की अदालत में बतौर विशेषज्ञ गवाह के रूप में पेश होते रहे। यह बात दीगर है कि अयोध्या पर आए यूपी हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के विवादास्पद फैसले में एक न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि चूंकि वे इतिहासकार नहीं है इसलिए उन्होंने ऐतिहासिक पहलू की छानबीन नहीं की पर उन्होंने यह भी कह दिया कि इन मुकदमों पर फैसला देने के लिए इतिहास और पुरातत्वशास्त्र अत्यावश्यक नहीं थे!



1. रामजन्मभूमि कहलाने वाली जगह पर ताजा खुदाई से यह पता चलता है कि भगवान राम के अयोध्या में जन्मा होने के परंपरागत विश्वास को इतिहास में अनंतकाल तक पीछे नहीं ले जाया जा सकता है क्योंकि यहां तो पहली बार आबादी ही 600 ईस्वीपूर्व में आयी थी।
2. ताजा खुदाई से इसकी और पुष्टि होती है कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर नहीं था। वास्तव में इसके नीचे (यानी उसी स्थान पर इससे पहले) सल्तनत काल की एक मस्जिद थी। इसलिए, 1528 में मस्जिद बनाने के लिए बाबर के ऐसे किसी कल्पित मंदिर को तोड़े जाने का सवाल ही नहीं उठता है।

3. खुदाई में यह भी पता चला है कि बाबरी मस्जिद से जुड़े पानी के हौज के ऊपर राम चबूतरा बनाया गया था। इसके साथ ही ईंट के टुकड़ों तथा सेंड स्टोन के स्तंभ आधारों का निर्माण और बाबरी मस्जिद परिसर में बनी कब्रें, सभी बाद में जोड़े गए निर्माण हैं और ये 18वीं-19वीं सदियों से पहले के नहीं लगते। उन्नीसवीं सदी में बाबरी मस्जिद का जीर्णोद्धार हुआ था और उसका दूसरा फर्श सभी बाद के निर्माणों को ढ़ांपे हुए था। यह विचित्र बात है कि विश्व हिंदू परिषद ने, संघ परिवार तथा भाजपा के समर्थन से, अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ घृणा तथा हिंसा का आंदोलन छेड़ा है। इसमें न तो मुस्लिम अल्पसंख्यकों का कोई कसूर है और न ही इसके पीछे कोई जायज कारण है। यह मुहिम मानवता, जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा सामाजिक न्याय के उन सभी मूल्यों की धज्जियां उड़ाते हुए छेड़ी गयी है, जिनकी सभी आधुनिक सभ्य समाज इतनी कद्र करते हैं।

एक और निर्माण भी बाबरी मस्जिद के परिसर में धंसता नजर आता है। इसमें `स्तंभ आधार` शामिल हैं। ये स्तंभ आधार, जो गोल से या चौकोर से हैं, बीच में ईंट के टुकड़ों के बने हैं, जिनके बीच में कंकड़-पत्थर लगा है और इनमें मिट्टी के गारे की चिनाई है। ये सभी निर्माण किसी एक ही बड़े निर्माण के हिस्से नहीं हैं, जैसाकि बी. बी. लाल तथा एस. पी. गुप्ता मान बैठे थे। ऐसा लगता है कि ऐसे स्तंभ आधारों के समूह हैं और ये स्वतंत्र, साधारण छप्परों, छाजनों के हिस्से होंगे, जिनका अयोध्या में और उसके आस-पास दूकानों, झोंपड़ियों आदि के लिए उपयोग आम है। मस्जिद के उत्तर की ओर कुछ स्तंभ आधार सेंट स्टोन के भी बने हैं। ईंट के टुकड़ों के बने स्तंभ आधारों की रचना, बी. बी. लाल को इससे पहले की अपनी खुदाई में मिले स्तंभ आधारों से भिन्न नहीं है। उन्होंने इनका समय 11वीं सदी आंकने में गलती की है।

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