आगे थे सबसे दौर-औ-ज़मन मैं भी दोस्तों
खिलते थे फूल मेरे चमन मैं भी दोस्तों .
फिर ये हुआ के सारे मनाज़िर बदल गए .
इंसां बदल गए ये अनासिर बदल गए .
इज़्ज़त को तार तार मेरे सामने किया .
बहनों को मेरी ख्वार मेरे सामने किया .
ममता की डबडबाती निगाहों के सामने .
बच्चों को भून डाला हे माओं के सामने .
सीने को अपने आब से पत्थर किये हुए .
माँ के कटे सरों को हैं बच्चे लिए हुए .
बम गोलियां रटार मुमासिल भी दाग कर .
वो खुश नहीं हुए हैं मिसाइल भी दाग कर .
वो मुफलिसों के हक़ की हिमायत कहाँ गयी .
मुंसिफ कहाँ गए वो अदालत कहाँ गयी .
आमिर सरीखी फ़िल्मी सितारे कहाँ पे हैं .
लोगों की वो मदद के इदारे कहाँ पे हैं .
तफकीर-औ-फ़िक़्र का ना कलेजा उबल पड़े
यारों मेरी क़लम से लहू ना निकल पड़े .
अब इख्तिताम करते हैं लिल्लाह बात को .
अल्लाह तुझ पे छोड़ते हैं अपनी ज़ात को .
-लकी फारुकी