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अयोध्या का बाइस्कोप - राजीव यादव

अयोध्या का बाइस्कोप... पांच साल पुराना लेख फ़्लैश बैक में...
मुझे कक्षा सात में पहली बार स्कूल टूर के साथ अयोध्या जाने का मौका मिला। अयोध्या पहुंचने पर सभी के दिलो-दिमाग में एक चीज थी ‘राम जन्म भूमि’ को देखना या कहें कि दर्शन करना। देखना था कि दर्शन करना था यह साफ नहीं था पर इस विचार को हमारे दिमाग में हमारे शिक्षकों और आस-पास के समाज ने डाला था। स्कूली बच्चों की क्रमबद्ध लाईनों से गुजरते वक्त गलियों-मुहल्लों को देखने की उत्सुकता व कौतूहल था। दोस्तों और शिक्षकों से पूछता था कि क्या यह राम के समय का है? यहां राम क्या करते थे? वगैरह-वगैरह। पर सभी उस ‘जन्म भूमि’ स्थल पर ही जाने को ‘व्याकुल’ थे।

पर एक ‘वो’ थी, की वो इन सवालों से न जाने क्यों दूरी बनाने की कोशिश कर रही थी। वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। वो बार-बार कह रही थी कि चलो यहां घूमें-वहां घूमें, झूला झूलें पर मेरा क्या था मैं भी तो उस ‘जन्म भूमि’ स्थल को देखने को ‘व्याकुल’ था। उसने कहा कि तुम रुक जाओ तो वहां मुझे नहीं जाना होगा, नहीं तो मैं अकेले हो जाउंगी और टीचर इसकी इजाजत नहीं देंगे की मैं अकेले रहूं। पर मैंने उसकी एक बात न सुनी क्योंकि ये ‘ऐतिहासिक मौका’ मैं चूकना नहीं चाहता था और उसे भी हम सबके साथ चलना पड़ा, न चाहते हुए।
बहरहाल, हम हनुमान गढ़ी होते हुए बाबरी मस्जिद के नजदीक जैसे-जैसे पहुंचने लगे वैसे-वैसे बढ़ रहे सुरक्षा के मानक हममें अपने धर्म के प्रति असुरक्षाबोध पैदा कर रहे थे। और इसके जनक भी हमारे शिक्षक ही थे जो इस स्थल पर किसी ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से हमें लेकर आए थे। रास्ते में वीसीआर लगे टीवी स्क्रीनों पर तेज आवाज में बजता संगीत न जाने क्यों कोई शौर्य-पराक्रम जैसा भाव हममें भरने की कोशिश कर रहा था। इसी बीच हमने एक बाइस्कोप खरीदा और घूमते फिरते उसे देखा भी और उसे उसने भी देखा और मैंने तो एक-दो बार ही देखा होगा पर उसने कई बार देखा।



खैर अब था उस ‘ऐतिहासिक स्थल’ पर पहुँचने की प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा मानको से गुजरने का वक्त। वहां सब कुछ जो भी हमारे जेब में था रुपया-पैसा, बेल्ट, पेन और हां वो बाइस्कोप भी जमा करवा लिया गया। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था और जब वो यह कह रही थी कि कहा था न कि न चलो पर माने नहीं तो लो फिर। कुछ बातों-बातों में लड़ते हुए लंबे-लंबे लोहे के बाड़े से गुजरते वक्त हमें बाबरी मस्जिद के अवषेशों की छोटी-बड़ी कहानियों का जो अनुभव हुआ उसमें एक बार मैं रम गया। और न जाने क्यों उस ‘तंबू’ में जिसमें हमारे ‘आराध्य’ थे के प्रति बड़ी ‘भाउकता’ आ रही थी। मुझे नहीं मालूम उसके दिलों-दिमाग में क्या चल रहा था पर उसके चेहरे की भावुकता मेरे अन्दर आत्मबल दे रही थी कि वो भी हमारे साथ है। मैंने भी उस तम्बूनुमा मंदिर को प्रणाम कर ‘ऐतिहासिक आनंद’ की अनुभूति ली।

मुझे दोबारा अयोध्या चार-पांच साल पहले पूर्वांचल में पल रही सांप्रदायिकता को लेकर कुछ साक्षात्कार लेने के लिए जाना पड़ा। जब हमारे एक साथी ने बताया की यहां के कुछ महंत इसकी मुखालफत करते हैं तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। क्योंकि मेरे अंदर जो अयोध्या की छवि थी वो इसके बिल्कुल विपरीत थी।
हनुमान गढ़ी की गलियों में फिर से वह बाइस्कोप मुझे एक दुकान पर टंगा दिखा। उसे देखते ही मुझे बचपन का वह बाइस्कोप और वो दोस्त याद आ गई। मैंने फिर उसे खरीदा और पैसा देते-देते देख गया कि क्या था उस बाइस्कोप में। जानते हैं क्या था उसमें? विध्वंस पर विजय की गाथा! जिसे समझने में मुझे इतने साल लग गए। वक्त मिले तो आप भी देखिएगा। उस बाइस्कोप को!



मुझे अबकी बार अयोध्या संवेदनशील-विवादित नहीं बल्कि निरीह सी दिख रही थी। इस निरीहिता के साथ मुझे बचपन की वह दोस्त बार-बार याद आ रही थी कि उसने इसे देखा होगा तो क्या सोचा होगा। हम हिंदू बच्चों की बहुसंख्यकता ने उसके अन्दर के जज्बात को दिल के अंदर ही दफन कर दिया होगा। वो भी अयोध्या की ही तरह नीरीह रही होगी, जिसने ‘राम-राम’ को ‘जय श्री राम’ में तब्दील होते देखा था। अयोध्या की गलियां बानबें की उस त्रासदी की गवाही करती हैं कि वो उस सदमें से अब तक नहीं उबर पाईं हैं। कहने को तो धर्म नगरी पर धर्म नगरी में बजने वाली घंटियों के मातमी शोर अयोध्या को बार-बार धमकी देते हैं कि कहीं यह नए कर्फ़्यू की तैयारी तो नहीं है। यह सिर्फ बातों का शब्दजाल नहीं है। एक नहीं अयोध्या की सारी गलियां इस बात की गवाह हैं कि बानबे के बाद यहां भवनों का नया निर्माण बहुत कम हुआ है। यही हाल नई दुकानों का भी है। पूरे शहर की वीरानगी को देख ऐसा लगता है कि ये लोग रंग-रोगन का मतलब शायद जानते ही नहीं। पर शायद यह हमारी भूल होगी, क्योंकि अवध के लोग अपने आराध्यों के साज-श्रृंगार को ही पूजा मानते हैं। निश्चय ही जिन लोगों की जिंदगी में धर्म मछली के कांटे की तरह अटका हो उनके लिए रंगों के मायने खत्म हो जाते हैं। आज अयोध्या अपनी पहचान को लेकर काफी परेशान है। जहां भी जाओ अयोध्या के हो तो बताओं राम लला का क्या चल रहा है? बजरंगी क्या कर रहे हैं? क्या अयोध्या बस इतनी भर है?

एक तरफ अवध के नवाबों द्वारा बसाई 1857 की साझी शहादत-साझी विरासत की परंपरा जहां मुस्लिम नवाबों द्वारा अनेकों मंदिरों-मठों का निर्माण कराया गया है तो दूसरी तरफ हिंदुत्ववादियों द्वारा छह दिसंबर बानबे को ढहाई बाबरी विध्वंस की कलंकित परंपरा। अगर पहले रुप को स्वीकार करती है तो ‘हिंदुस्तान की राजनीति’ उसे अधर्मी कह जनसंहार पर उतारु हो जाती है। और दूसरे रुप को स्वीकारती है तो उसे घुटन होती है। क्योंकि अयोध्या ने अपनों को धर्म की सेज पर लाशों में तब्दील होते देखा है। और जब भी आवाज उठाने की कोशिश की तो उसे ‘जय श्री राम’ के नारों के कोलाहल के बीच दबा दिया गया। शायद ऐसी ही वजहों से मैं अयोध्या को इतने वक्त बाद जान पाया क्योंकि उसकी आवाज दब सी गई है।



अगर धर्म की बात करें तो अयोध्या के और भी कई मायने हैं। अयोध्या को खुर्द मक्का यानी छोटी मक्का के नाम से जाना जाता है। हजरत आदम की नवीं संतान हजरत नूह की नौगजी कब्र मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि जब जलजला आया तो नूह ने नर-मादा जीवों के एक-एक जोड़ी को एक नाव पर सुरक्षित कर लिया था जिससे सृष्टि का फिर से निर्माण हो सके। दूसरे पैगम्बर हजरत शीश जिन्हें हिन्दू शीश बाबा के नाम से जानते हैं और रामायण मेले की शुरुआत यहीं से होती है। तीसरे पैगम्बर हजरत अय्यूब, सब्र के सबसे बड़े पैगंबर माने जाते हैं। इन सब बातों का जिक्र अयोध्या शोध संस्थान और फारसी की अनेकों किताबों में है। हनुमान गढ़ी के पास के दंत धावन कुंड के बारे में है कि गौतम बुद्ध ने यहां बारह वर्षों तक वर्षावास किया था। तो वहीं अयोध्यावासी जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव का जन्म स्थान अयोध्या को बताते हैं। ये वे मान्यताएं हैं जो बताती हैं कि अयोध्या सभी धर्मों की शरण स्थली रहा है।

यहां सूफी संतों की बाईस-तेइस दरगाहें और मजारें हैं। जिसमें हजरत इब्राहिम शाह का बड़ा नाम है। अयोध्या के लिए सूफीवाद एक विचार नहीं बल्कि चरित्र है जो सूफियों के आने से पहले ही इसकी धमनियों में दौड़ रहा था। पर छवियों की राजनीति ने इन सब बातों को प्रायोजित तरीके से भुला दिया। जो बाबरी मस्जिद थी वह पहले राम जन्म भूमि विवादित ढांचा हुई फिर उसका ध्वंस हुआ और फिर आज यह क्षेत्र थाना राम जन्म भूमि के अन्तर्गत है। आज एक बार फिर घंटियों का शोर बढ़ रहा है और अयोध्या बहुत परेशान है।
(राजीव यादव, रिहाई मंच महासचिव, लखनऊ 6 dec 2010)

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