घुटनों पर झुकी हुई , दोनों हाथों से चेहरा छुपाए लड़की की छवि बलात्कार से जुड़ी खबरों , कहानियों और लेखों के साथ छपने और दिखाया जाने वाला नेशनल प्रतीक चित्र बन चुका है। यह असल में बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा देने वाला चित्र है।
यह चित्र हर बार बताता है कि बलात्कार आहत बच्ची के लिए हद दर्ज़े की शर्म और गलाज़त की बात है । गोया वो आहत नहीं , अपराधी हो । जबकि अपराधी है बलात्कारी।
उस बच्ची ने क्या किया है ? वो क्यों शर्मिंदा हो ? शर्मिंदा हो अपराधी ,शर्मिंदा हो समाज , शर्मिंदा हो सरकार , जिन्हें कभी शर्म नहीं आती।
आप बच्ची को शर्मिंदा दिखा कर हर बच्ची को डराते हैं।और बलात्कारियों का उत्साह बढ़ाते हैं। आप इस सफ़ेद झूठ को बढ़ावा देते हैं कि रेप से लड़की की इज़्ज़त चली जाती है और अपराधी का कुछ भी नहीं बिगड़ता। इस शर्मनाक सामाजिक मान्यता से बलात्कार की संस्कृति का जन्म होता है।
चोट कोई भी खा सकता है। चोट खाने से कोई बेचारा नहीं हो जाता। वह ज़िंदा रही , उसने अपराधी का और अपराधी समाज का मुकाबला किया । कितनी भी पीड़ा हुई , पर उसने फिर अपनी ज़िंदगी सहेजी । उसका उठ खड़ा होना अपराधी संस्कृति के मुंह पर सबसे जोरदार तमाचा है। वह असहाय शिकार नहीं , योद्धा है।
अंग्रेज़ी मीडिया भी अब रेप विक्टिम नहीं , रेप सर्वाइवर लिखता है। उत्तरजीवी।लेकिन सही शब्द है फाइटर। योद्धा।
रेप की कहानियों के साथ चलनेवाले शर्मनाक प्रतीक चित्र को बंद करने का अभियान तत्काल शुरू कीजिए। सुनो मीडिया वालों , सम्पादकों , लेखकों , विद्वानों। चलाना ही हो तो शर्म में डूबे चेहरा छुपाए बलात्कारी मर्द की तस्वीर चलाओ। या उसे सींकचों में बंद दिखाओ। साथ एक बहादुर योद्धा लड़की की छवि दिखाओ । तब बलात्कार की संस्कृति बदलनी शुरू होगी। अपराधियों को शर्म आनी शुरू होगी।
- Ashutosh Kumar