अलेप्पो के सभी डॉक्टर को पहले ही मार डाला गया, हॉस्पिटल्स को बम से उड़ा दिया गया, फिर अलेप्पो पे कब्जा किया गया.
-विद्रोही जो 5 साल से लड़ रहे थे आखिरकार अलेप्पो को हार गए, इस जंग में लाखो लोग मारे गए.
अब अलेप्पो और अलेप्पो की अवाम बशरूल असद के कब्जे में हो गयी है, वो जैसा चाहे वैसा सलूक करे, पिछले दो हफ्ते में सिर्फ अलेप्पो में 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए है, हजारो मर्द और औरत पर असद सेना कब्जा करके इन्हें किसी गुप्त जगह पे भेज दिया है.
आईये एक नजर डालते है की इस हार के लिए जिम्मेदार कौन है -
2011 में जब अलेप्पो की जनता असद राजिम के जुर्म से आजीज आ कर हथियार उठायी तो उसकी मदद को तुर्की, सऊदी, अमेरिका आगे आये, एक वक़्त ऐसा भी आया था की अलेप्पो विद्रोही असद को ख़त्म करने के करीब पहुच गए, लेकिन इस ऐन वक़्त पर असद की मदद को ईरान, हिजबुल्लाह, रूस, चाईना आ गया फिर असद मजबूत होता गया.
रूस जब असद के साथ हो गया तो अमेरिका पीछे हट गया और बातचीत पर आ गया, अमेरिका को पीछे हटता देख कर सऊदी अरब और तुर्की भी पीछे हट गए जिसकी वजह से अलेप्पो विद्रोही कमजोर होते गए और असद मजबूत होता गया. नतीजा आप के सामने है - अलेप्पो विद्रोही बुरी तरह हार गए, इन्होंने अपना सब कुछ लूटा दिया, खुद को बर्बाद कर लिया, जब तक जान में जान थी जालिम से लड़े लेकिन जुर्म के आगे झुके नहीं.
अलेप्पो की जंग का अंजाम कुछ और होता अगर तुर्की, सऊदी और अमेरिका अलेप्पो की जनता का साथ देते, शुरू में शुरू में तुर्की, सऊदी और अमेरिका इनका साथ खूब दिया लेकिन जब जंग अपने अंजाम पर पहुचने वाली थी तो इन तीनो देशो ने रूस के डर से अलेप्पो की जनता का साथ छोड़ दिया, और यही धोका होता है.
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तुर्की, सऊदी, अमेरिका ने धोका दिया अलेप्पो की अवाम को - अलेप्पो के इस अंजाम के जिम्मेदार यही है. (सोशल मीडिया से साभार)