फाइल फोटो |
म्यांमार के सित्वे में एक प्रेग्नेंट महिला बेबस सी इधर उधर देख रही थी। दर्द से तड़पती इस महिला के पास कोई नहीं था। बौद्ध धर्म को मानने वाले मिन मिन को तरस आया। वह उस महिला को अपना फोन दे रहा था कि अपने पति को फोन कर सके. तभी आवाज आई, उसकी मदद मत करो, वह एक मुसलमान है. आवाज एक डॉक्टर की थी। मिन मिन उस वाकये को याद करते हुए कहते हैं, “डॉक्टर चाहता था कि महिला फोन के पैसे दे. इनकमिंग कॉल के भी।”
म्यांमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन प्रांत की राजधानी सित्वे में मिन मिन ने ऐसी दर्जनों घटनाएं देखी हैं। उनके शहर में सालों से बहुसंख्यक बौद्ध और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच रार ठनी हुई है, जो कभी कभार हिंसक हो जाती है।
मिन मिन एक पत्रकार हैं। उन्होंने बचपन से ही ऐसी बातें सुनी हैं कि बांग्लादेश से आए ये मुसलमान रखाइन पर कब्जा करना चाहते हैं। लेकिन पांच साल थाईलैंड और मलेशिया में रहने के बाद 27 साल के मिन मिन की सोच अब बदल चुकी है। और उस रोज अस्पताल में हुई घटना के बाद तो उन्होंने ठान लिया कि इसे लेकर कुछ करना ही होगा। तब उन्होंने रोहिंग्या लोगों के दर्द पर लिखना शुरू किया। उन्होंने पड़ताल की कि वे लोग कैसे जी रहे हैं। उनकी मूलभूत जरूरतें भी कैसे पूरी हो रही हैं। यहां तक कि डॉक्टरों से मिलना भी उनके लिए बहुत मुश्किल काम है। वह बताते हैं, “अगर हम दोनों पक्षों की बात नहीं सुनेंगे तो फिर दोनों पक्ष एक दूसरे से बातचीत कैसे करेंगे?”
तमाम धमकियों के बावजूद मिन मिन ने इस महीने से अपनी मासिक पत्रिका रूट शुरू कर दी है जिसमें वह दोनों पक्षों के पीड़ितों की बात करते हैं। पहले अंक में 23 साल की एक टीचर यादना की कहानी है। बौद्ध धर्म की यादना को मुसलमानों और बौद्धों के बीच जुड़ाव पैदा करने की कोशिशों के लिए धमकाया जा रहा है. हालांकि यादना अब खाली हो चुके गांवों को देखती रहती हैं। (myzavia से साभार)