Type Here to Get Search Results !

Click

म्यानमार : शांतिदूत की इंसानियत, कहा वह मुसलमान है मदत मत करो

फाइल फोटो
म्यांमार में रोहिंग्याओं (मुसलमानों) का जीना तो मुश्किल है ही, वे बौद्ध भी जिनके दिलो में इंसानियत बाकी है वे भी परेशान हैं क्योंकि वे आवाज उठाते हैं। दोनों पक्षों को जोड़ने की बात करना अपराध सरीखा हो गया है।

म्यांमार के सित्वे में एक प्रेग्नेंट महिला बेबस सी इधर उधर देख रही थी। दर्द से तड़पती इस महिला के पास कोई नहीं था। बौद्ध धर्म को मानने वाले मिन मिन को तरस आया। वह उस महिला को अपना फोन दे रहा था कि अपने पति को फोन कर सके. तभी आवाज आई, उसकी मदद मत करो, वह एक मुसलमान है. आवाज एक डॉक्टर की थी। मिन मिन उस वाकये को याद करते हुए कहते हैं, “डॉक्टर चाहता था कि महिला फोन के पैसे दे. इनकमिंग कॉल के भी।”

म्यांमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन प्रांत की राजधानी सित्वे में मिन मिन ने ऐसी दर्जनों घटनाएं देखी हैं। उनके शहर में सालों से बहुसंख्यक बौद्ध और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच रार ठनी हुई है, जो कभी कभार हिंसक हो जाती है।


बौद्ध बहुल देश म्यांमार इन मुसलमानों को अपना नागरिक नहीं मानता। हालांकि ये यहां पीढ़ियों से रह रहे हैं लेकिन देश के बहुत से लोग सरकार की इस बात से सहमत हैं कि म्यांमार पर इन लोगों का कोई हक नहीं है। इन्हें रोहिंग्या कहा जाता है और इन्हें देश से भगाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने इन 11 लाख लोगों को दुनिया के सबसे सताये हुए लोग कहा है. इनमें से ज्यादातर लोग रखाइन में ही रहते हैं। हजारों लोग देश छोड़कर आस-पास के मुल्कों में जा रहे हैं।

मिन मिन एक पत्रकार हैं। उन्होंने बचपन से ही ऐसी बातें सुनी हैं कि बांग्लादेश से आए ये मुसलमान रखाइन पर कब्जा करना चाहते हैं। लेकिन पांच साल थाईलैंड और मलेशिया में रहने के बाद 27 साल के मिन मिन की सोच अब बदल चुकी है। और उस रोज अस्पताल में हुई घटना के बाद तो उन्होंने ठान लिया कि इसे लेकर कुछ करना ही होगा। तब उन्होंने रोहिंग्या लोगों के दर्द पर लिखना शुरू किया। उन्होंने पड़ताल की कि वे लोग कैसे जी रहे हैं। उनकी मूलभूत जरूरतें भी कैसे पूरी हो रही हैं। यहां तक कि डॉक्टरों से मिलना भी उनके लिए बहुत मुश्किल काम है। वह बताते हैं, “अगर हम दोनों पक्षों की बात नहीं सुनेंगे तो फिर दोनों पक्ष एक दूसरे से बातचीत कैसे करेंगे?”


अपनी इस सोच को लेकर मिन मिन को स्थानीय नागरिकों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी है। मार्च में सित्वे में उनके घर पर बम फेंका गया जिसके बाद उन्हें अपना परिवार लेकर यंगून जाना पड़ा। राष्ट्रवादियों ने तो मिन मिन के सिर पर 29 हजार डॉलर का इनाम भी रख दिया है. वह कहते हैं, “मैं डरता नहीं हूं लेकिन मुझे उम्मीद है कि मेरा देश बदलेगा और मेरे बेटे को सिर्फ इसलिए उसके साथी परेशान नहीं करेंगे कि उसका पिता बोलता है।”

तमाम धमकियों के बावजूद मिन मिन ने इस महीने से अपनी मासिक पत्रिका रूट शुरू कर दी है जिसमें वह दोनों पक्षों के पीड़ितों की बात करते हैं। पहले अंक में 23 साल की एक टीचर यादना की कहानी है। बौद्ध धर्म की यादना को मुसलमानों और बौद्धों के बीच जुड़ाव पैदा करने की कोशिशों के लिए धमकाया जा रहा है. हालांकि यादना अब खाली हो चुके गांवों को देखती रहती हैं। (myzavia से साभार)


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies