Type Here to Get Search Results !

Click

एक और बेगुनाह मुसलमान इरशाद 11 साल बाद निर्दोष रिहा

कई साल तक तो मुझे खूब गुस्सा आया, बाद में मैंने खुद को किस्मत के हवाले कर दिया- आतंकवाद के झूठे आरोप में 11 साल जेल में रहे इरशाद अली का दर्द2 2 दिसंबर को दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। जेल में रहते हुए उन्होंने अपने माता-पिता और एक 6 महीने की बेटी को खो दिया था।

कई साल तक तो मुझे खूब गुस्सा आया, बाद में मैंने खुद को किस्मत के हवाले कर दिया- आतंकवाद के झूठे आरोप में 11 साल जेल में रहे इरशाद अली का दर्दइरशाद अली और उनकी पत्नी 
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के इंदर इनक्लेव में एक कमरे वाले मकान में बैठे इरशाद अली के पास अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं है। इस मकान में वह अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहते हैं। आतंकियों से जुड़े होने के आरोप में इरशाद को 11 साल जेल में रहना पड़ा था, जो अब झूठे साबित हुए। इसी 22 दिसंबर को दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। जेल में रहते हुए उन्होंने अपने माता-पिता और एक 6 महीने की बेटी को खो दिया। उन्होंने कहा कि मेरी मां मेरी गिरफ्तारी के एक साल बाद ही मर गई। वह पुलिस स्टेशन आती रही सिर्फ अपमानित होने के लिए। मेरे पिता की मौत इसी साल हो गई थी। उन्होंने मुझे जेल से बाहर निकालने के लिए अपनी एक-एक पाई खर्च कर दी। मेरी बेटी आयफा सिर्फ 6 महीने की थी जब मुझे जेल हुई थी।



अली के पिता मोहम्मद यूनुस 50 साल पहले दरभंगा के पैगंबरपुर गांव से काम की तलाश में दिल्ली आए थे। उनके आठ बच्चे थे। उन्होंने अली को दरभंगा के ही एक मदरसे में पढ़ने भेज दिया। लेकिन अली ने उसे छोड़ दिया और एक मर्डर के केस में बड़े भाई की गिरफ्तारी के बाद वह साल 1991 में दिल्ली आ गया। इसके बाद अली के भाई आतंकवाद के केस में गिरफ्तार कर लिया गया।  साल 1996 में उसे और उसके पिता को पुलिस ने पकड़ लिया। अली ने बताया कि एसीपी राजबीर सिंह ने 10 दिन तक हमें मॉरिस नगर में रखा। मेरे पिता को मेरे सामने ही प्रताड़ित किया गया। वो कहते रहे कि मेरा भाई एक आतंकवादी है और मैं भी। उनकी मां ने जब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तब पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया।

इसके बाद क्राइम ब्रांच ने उन्हें फिर से पकड़ लिया और 8 दिनों तक टॉर्चर किया। उन पर इन्फॉर्मर बनने का दबाव भी डाला गया। 2001  मुझे एक आईबी के अफसर मजीद अली ने पकड़ लिया, जिसका दूसरा नाम खालिद था। उन्होंने मेरे दर्जी दोस्त रिजवान को भी पकड़ लिया। उन्होंने कहा कि मैं अपने भाई को खत लिखूं और कहूं कि मुझे बचाने के लिए वही करे जो कहा जा रहा है। नौशाद पुलिस की तरफ से जेल के अंदर काम करने के लिए तैयार हो गया और अली बाहर से। हमें 5000 रुपये मासिक तनख्वाह और एक फोन दिया गया। मेरे भाई का काम उन लोगों पर नजर रखना था जो आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार हुए हैं और मेरा काम मजीद को रिपोर्ट करना था। आरोपी जो खत पोस्ट करने को देते थे वह मुझे मजीद को देने होते थे।



इसके बाद मजीद ने उससे एक मुस्लिम गांव में बतौर मौलवी जाने को कहा और वहां के लोगों को किसी आतंकी संगठन में भर्ती होने को बोला। मजीद ने यह भी कहा कि एक मीटिंग का आयोजन करो जिस वह छापा मारेगा। इसके बाद मैं भाग जाऊंगा और बाकी लोगों को पकड़ लिया जाएगा और कोई भी इस अॉपरेशन पर सवाल नहीं उठा पाएगा।

इरशाद ने कहा, साल 2004 में मुझे कश्मीरी फयाज से मिलवाया गया, जो आईबी के लिए काम करता था। योजना थी कि हम बॉर्डर पार कर एक विद्रोही संगठन में घुसपैठ करेंगे। लेकिन यह प्लान सफल नहीं हुआ। साल 2005 में मजीद ने मुझे धौला कुआं अॉफिस बुलाया। मुझे कार में बंद कर आंखों पर पट्टी बांध दी गई। इसके बाद करनाल बायपास पर ले जाकर उन्होंने झूठी कहानी बनाई कि हम कश्मीर से आए हैं। उन्होंने मुझे आतंकी बना दिया। इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट में जब अर्जी लगाई गई तो स्पेशल सेल की कहानी संदिग्ध पाई गई और कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अली और नवाब नाम के दो इन्फॉर्मर्स को स्पेशल सेल ने झूठे केस में फंसाया। (जनसत्ता ऑनलाइन से साभार)




Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies