संयुक्त राष्ट्र संघ की सांस्कृतिक व वैज्ञानिक मामलों की संस्था युनेस्को ने एक प्रस्ताव में कहा है कि मस्जिदुल अक़सा और बैतुल क़ुद्स का यहूदियों से कोई संबंध नहीं है।
इस प्रस्ताव पर ज़ायोनियों और अमरीका ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने बैतुल मुक़द्दस और मस्जिद अक़सा में ज़ायोनी शासन की निर्माण गतिविधियों को tjग़ैर क़ानूनी बताए जाने पर कहा कि इस्राईल युनेस्को के प्रस्ताव पर कोई भी ध्यान दिए बिना इन क्षेत्रों में यहूदी कालोनियों के निर्माण का काम जारी रखेगा।
अमरीकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता मार्ट टोनर ने भी कहा कि वाशिंग्टन युनेस्को के प्रस्ताव का विरोध करता है और इस प्रकार के प्रस्तावों से क्षेत्र की समस्याओं के समाधान में कोई मदद नहीं मिलेगा। युनेस्को ने बृहस्पतिवार को एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमे कहा गया है कि बैतुल मुक़द्दस में स्थित धार्मिक स्थलों विशेष रूप से मस्जिदु अक़सा से यहूदियों का किसी प्रकार का धार्मिक या सांस्कृति रिश्ता नहीं है। इस प्रस्ताव के पक्ष में 24 देशों ने और विरोध में 6 देशों ने वोट दिया जबकि 26 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
इस प्रस्ताव से साबित हो गया है कि इस्राईल एक अतिग्रहणकारी शासन के रूप में काम कर रहा है और उसे चाहिए कि अपनी विस्तारवादी गतिविधियां तत्काल बंद करे। इस्राईल हमेशा से इस कोशिश में रहा है कि बैतुल मुक़द्दस को पूरी तरह हड़प ले और इसी प्रयास के तहत उसने वर्ष 2014 में एक योजना तैयार करके शहर पर चरणबद्ध रूप से क़ब्ज़ा करने की प्रक्रिया शुरू की है। इन परिस्थितियों में युनेस्को ने जो प्रस्ताव पारित किया है उससे लगता है कि ज़ायोनी शासन की अत्याचारी और अतिग्रहणकारी गतिविधियां इतनी भयानक हो गई हैं कि इस्राईल के समर्थक भी उसका विरोध करने पर विवश हो गए हैं लेकिन इस्राईल को अतिग्रहकारी गतिविधियों से रोकने के लिए अभी और ठोस क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है।