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कश्मीर का मौजूदा आंदोलन पूरी तरह होमग्रोन -रिहाई मंच

कश्मीर का मौजूदा आंदोलन पूरी तरह होमग्रोन
कश्मीरी आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर ‘युद्धोंमाद के दौर में भारतीय लोकतंत्र’ विषय पर रिहाई मंच ने लखनऊ में किया सेमिनार

लखनऊ 17 अक्टूबर 2016। इस समय कश्मीर की अवाम के साथ खड़ा होना भारतीय लोकतंत्र को बचाने के लिए बहुत अहम है। भारतीय राज्य द्वारा कश्मीरी आंदोलनकारियों की ठंडे दिमाग से हत्याएं की जा रही हैं। जिस पर भारतीय समाज की चुप्पी आपराधिक है। वहीं विश्व समुदाय की चुप्पी स्थिति को और भयावह बना रही है जिससे न सिर्फ इस उपमहाद्वीप बल्कि पूरी दुनिया की शांति के लिए खतरा मंडरा रहा है। कश्मीर इस समय अपने आंदोलन के नए शिखर पर है जिससे भारत सरकार का टकराव इसे और तेज करेगा। इस जमीनी सच्चाई को नकारने वाली भारत सरकार कश्मीरी अशांति की सबसे बड़ी जिम्मेदार है। कश्मीर में भारतीय राज्य का यह सैन्य दमन सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं रहेगा। सरकार इस हथियार का इस्तेमाल देश के अंदुरूनी हिस्सों में आदिवासियों और दलितों के आक्रोश को दबाने के लिए भी करेगी। ये बातें प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखक गौतम नवलखा ने रिहाई मंच द्वारा कश्मीरी आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर आयोजित ‘युद्धोन्माद के दौर में भारतीय लोकतंत्र’ सम्मेलन में बतौर मुख्य वक्ता कहीं। 




कश्मीर के मौजूदा हालात पर बोलते हुए गौतम नवलखा ने कहा कि भारतीय राज्य वहां अनुकूल परिस्थतियां निर्मित करने की नीति के बजाए अमानवीय हिंसा को बढ़ावा दे रहा है जिससे लोगों में भारत के खिलाफ गुस्सा और बढ़ना तय है। भारत के किसी भी हिस्से में सेना आंदोलनकारियों की हत्या की नियत से सीधे गोली नहीं चलाती, यह सिर्फ कश्मीर में होता है। जहां ऐसी हत्याओं के लिए सेना को नीतिगत स्तर पर प्रोत्साहित किया जाता है। जिसके खिलाफ विरोध के स्वर खुद सेना के भीतर से उठते रहे हैं। सेना से जुड़े अधिकारी समय-समय पर इस बात को कहते रहे हैं कि कश्मीर का कोई सैन्य हल नहीं हो सकता, उसका राजनीतिक समाधान ही किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वहां हो रही हिंसा में सेना के बजाए अर्धसैनिक बलों की ज्यादा भूमिका है। कश्मीर आंदोलन में यह पहली बार है कि इस जनाक्रोश का कोई नेता नहीं है और पूरा आंदोलन स्वतःस्फूर्त है जिसे स्थानीय लोगों द्वारा खुद चलाया जा रहा है। इस सच्चाई को तो अब खुद पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे एम के नारायणन जैसे लोग भी स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन केंद्र सरकार इस सच्चाई को स्वीकार करने के बजाए कश्मीर में राज्य प्रायोजित हिंसा के सबसे विभत्स उदाहरण रच रही है। जिसमें वो राष्ट्रवाद की आड़ में अपने देश के सैनिकों की हत्या करवा रही है। 

बुरहान वानी को शहीद बताते हुए गौतम नवलखा ने कहा कि भारतीय सेना की घेरेबंदी के बावजूद उसके जनाजे में दो लाख लोगों का शामिल होना यह साबित करता है कि कश्मीर आंदोलन में अब स्थानीय नेतृत्व उभर रहा है जिसका अपनी अवाम के साथ पारिवारिक और जज्बाती रिश्ता है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को अब सोचना पड़ेगा कि आखिर जिस बुरहान वानी ने अपने फेसबुक वाॅल पर अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी की थी और कश्मीरी पंडितों को वापस लौट आने का आह्वान किया था उसे हत्यारा बताकर सरकार उन्हें क्यूं सच्चाई से दूर रखना चाहती है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी अवाम के साथ खड़े न होकर भारतीय समाज भी कश्मीरियों की हत्याओं का भागीदार बन रहा है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी अवाम के साथ खड़ा होना लोकतंत्र के पक्ष में खड़ा होना है। यह समय भारतीय समाज के लिए निर्णय का वक्त है कि वह लोकतंत्र के साथ खड़ी है या हत्यारी निजाम के साथ।




गौतम नवलखा ने कहा कि पिछले 100 दिन में ही वहां 17 हजार लोग जख्मी हुए हैं और एक हजार से ज्यादा लोगों की आंखों पर पैलेट गंस से छर्रे दागे गए हैं, 90 लोगों की हत्या हुई और 7 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। राज्य ने कश्मीर में अपनी दमनकारी नीतियों से अब तक 23 हजार महिलाआंे को अर्ध विधवा बना दिया है तो वहीं 10 हजार से ज्यादा महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया है। कश्मीर में 10 हजार से ज्यादा गुप्त कब्रे हैं, जिसमें आंदोलनकारियों और आम लोगों को मार कर भारतीय सेना ने दफना दिया है। जिसके दोषियों को सजा देने के बजाए पुरस्कृत किया जाता है। सरकार की यही नीति हम झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी देख सकते हैं जहां अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए लड़ रहे लोगों को हत्या और बलात्कार का शिकार बनाया जाता है और दोषियों को राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार दिया जाता है। अगर लोकतंत्र को बचाना है तो इस युद्धोंन्माद की राजनीति का खुलकर विरोध करना हर एक ईमानदार नागरिक की जिम्मेदारी है। 

वहीं वरिष्ठ कवि और पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि हिंदुस्तान को कश्मीर से वापस आ जाना चाहिए और कश्मीर को कश्मीरियों के रहमो-करम पर छोड़ देना चाहिए। यही हिंदुस्तान और कश्मीर दोनांे के हित में है। कश्मीरी आवाम के नौजवान नेता बुरहान वानी की 8 जुलाई की हत्या के बाद जिस तरह वहां सौ दिन से जबरदस्त और अभूतपूर्व लड़ाकू जनप्रतिरोध आंदोलन चल रहा है, जहां ‘गो बैक इंडिया, हमें आजादी चाहिए, भारतीय कुत्तों कश्मीर छोड़ो’ जैसे नारे लग रहे हैं, उसमें इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का तकाजा यही है कि भारत वहां से चला आए। यही भारत और कश्मीर दोनों के हित में है।




अध्यक्षीय सम्बोधन में रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि जो लोग यह अफवाह फैलाते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है वो पहले दलितों और आदिवासियों को समाज का अभिन्न और बराबर का नागरिक मानकर उनके संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार दें। मंच के अध्यक्ष ने कहा कि कश्मीर से रोजगार और शिक्षा के लिए यूपी आने वाले कई नौजवानों को पूर्ववर्ती सपा और बसपा सरकारों में फर्जी मुठभेड़ों में मारा और फंसाया गया। जो 10-10 साल तक जेल में रहने के बाद अदालतों द्वारा बेगुनाह साबित कर छोड़ दिए गए। यूपी में तो कश्मीरियों के आतंकी होने का हव्वा इस कदर खुफिया एजेंसियों और मीडिया द्वारा बढ़ा दिया गया है कि सिर्फ कश्मीरी की तरह दिखने वाले गोरे और लम्बी कद काठी के सीतापुर निवासी सैयद मुबारक को आईबी और एसटीएफ ने कश्मरी आतंकी बता कर साढ़े चार साल तक जेल में बंद रखा।

इससे पहले विषय प्रवर्तन करते हुए रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि कश्मीर में सरकार की दमनकारी नीति के शिकार सिर्फ मुसलमान ही नहीं हैं। वहां कश्मीरी हिंदुआंे और सिखों को भी नदीमर्ग और छत्तीसिंहपुरा जनसंहारों में भारतीय सेना ने मारा है। जिस पर लगातार पंडित औैर सिख समुदाय के नेता सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसिंहपुरा जनसंहार को तो खुद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल किल्ंटन ने भी भारतीय एजंेसियों द्वारा अंजाम दिया गया बताया था। उन्होंने कहा कि अपने को जेपी का अनुयायी बताने वाले मुलायम सिंह यादव जैसे नेता भी संघ परिवार की कश्मीर नीति पर ही चलते हुए उनके दमन के समर्थन में बयान देते हैं। जबकि खुद जेपी ने कश्मीरी आवाम को सैन्य दमन के बल पर अपने अधीन रखने की नीतियों का विरोध किया था।




सम्मेलन में किरन सिंह, उषा राय, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, प्रोफेसर हृणन्य धर, संदीप पांडे, केके वत्स, कल्पना पांडेय, आशा मिश्रा, संतराम गुप्ता, अजय शर्मा, जीपी मिश्रा, श्रीराम शुक्ला, सत्येंद्र कुमार, मोहम्मद मसूद, मनोज राजभर, विनोद मिश्रा, कांति मिश्रा, डाॅ दाउद खान, इनायतुल्लाह खान, आरिफ मासूमी, संतोष सिंह, प्र्रतीक सरकार, सुशील कुमार त्रिपाठी, शशांक लाल, ओपी सिन्हा, कात्यायनी, शाहरूख अहमद, मोहम्मद नदीम, गुफरान सिद्दीकी, सुधा सिंह, राजीव यादव, आशीष अवस्थी, शकील सिद्दीकी, राजीव यादव, शकील कुरैशी, ओबैदुर रहमान, इरशाद अहमद, अनिल यादव, देवना जोशी, राॅबिन वर्मा, एहसानुल हक मलिक, मोहम्मद जाहिद आदि उपस्थित थे। 

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