शब्बीर हुसैन कुरैशी पिछले कई साल से मीट के धंधे में है और अहमदाबाद के मिर्ज़ापुर के मीट मार्केट में उनकी दुकान है। मई में दो पुलिस वाले कुरैशी की दुकान पर आए और आरोप लगाया कि उनकी दुकान में गाय का मीट है। उन्होंने करीब 125 किलो मीट गाड़ी में रखवाया और थाने ले गए।
शब्बीर का आरोप है कि पुलिस वालों ने उनकी बहुत पिटाई की जिससे उनका पैर टूट गया। वे बताते हैं कि प्रशासन ने मीट की जांच करवाई और पाया गया कि मीट भैंस का है। अब मामला अदालत में है।
ग्रेटर नोएडा में अख़लाक़ की हत्या के वाक़ये के अलावा ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें खुद को गोरक्षक बताने वालों ने गोमांस ले जाने के आरोप में कई लोगों की बुरी तरह पिटाई की है। शब्बीर बताते हैं कि उन जैसे कई दुकानदार मीट मार्केट में बिज़नेस करते हुए डरते हैं कि कोई दुकान में गोमांस होने का आरोप न लगाए। लोग दुश्मनी निकालने के लिए ऐसे आरोप लगा सकते हैं। गुजरात में गोहत्या पर पाबंदी है।
गोरक्षा समितियों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने गाय की चमड़ी उतारने के आरोप में तीन दलित युवकों और एक लड़के की जो पिटाई की थी, उसके बाद जो दलितों का प्रदर्शन हुआ था उसे गुजरात के मुसलमान बहुत ध्यान से देख रहे हैं। स्थानीय मुस्लिम कार्यकर्ता दानिश क़ुरैशी कहते हैं कि मीट के मुद्दे पर प्रशासन की कार्रवाइयों को देखकर लगता है कि इस पूरे मुद्दे पर प्रशासन भारी ऊर्जा खर्च कर रहा है जिससे दूसरे कामों पर असर पड़ता है। वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि आरएसएस की जो राजनीति है, उत्तर भारत के ब्राह्मणों का ब्राह्मणवाद है, उसे पूरे भारत में फैलाने की कोशिश की जा रही है। अगर आप दक्षिण भारत में जाएं तो मैंने वहां ब्राह्मण के यहां मांसाहारी भोजन खाया हुआ है।”
दानिश का आरोप है कि पूरे गुजरात में ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि अगर आप मांसाहारी हैं तो आपका स्वागत नहीं है। वो कहते हैं, “ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि अगर आप मांसाहारी है तो आपको बोलने में भी शर्म महसूस हो।”
गुजरात में जैनियों और स्वामीनारायण समुदाय का बहुत असर है जिसके कारण अगर आप मांसाहारी हैं तो आपके लिए मकान किराए पर लेना भी आसान नहीं। दानिश और कुछ स्थानीय लोगों ने प्रशासन से गुहार भी लगाई है कि गौरक्षा मंडलियों पर रोक लगे, उनकी फंडिंग पर रोक लगे, उनके खिलाफ़ कार्रवाई हो, और उनको मिल रहे सपोर्ट पर रोक लगनी चाहिए. दानिश कहते हैं कि 2002 दंगों में दलित और मुसलमानों में आई दूरियों के बावजूद वो इस मुद्दे पर दलितों के साथ हैं।
पुलिस में इन गौरक्षकों को लेकर क्या सोच है। गांधीनगर स्थित पुलिस मुख्यालय में एक वरिष्ठ अधिकारी से मुलाकात में मैंने यही सवाल रखा। पुलिस इन गौरक्षकों के बारे में क्या सोचती है और कार्रवाई क्यों नहीं करती? जवाब मिला, “जाने दीजिए न इन सब बातों को।”
अहमदाबाद में शाहबाग में जहां वरिष्ठ पुलिस अफ़सर बैठते हैं, वहां एक अन्य पुलिस अफ़सर से मैंने यही पूछा, क्या उन पर कोई दबाव है? वो कार्रवाई क्यों नहीं करते? जवाब मिला, “हम किसी के मात्र गोरक्षक होने पर कार्रवाई नहीं कर सकते लेकिन अगर वो व्यक्ति कानून तोड़ता है तो तभी उस पर कोई कार्रवाई की जा सकती है.”
एक अन्य पुलिस अफ़सर ने बताया कि पुलिस के पास गोमांस की शिकायत लेकर लोग फ़ोन करते हैं और पुलिस को इन शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करनी होती है, नहीं तो स्थिति बिगड़ने का खतरा रहता है। इस अफ़सर का कहना था कि इस बारे में पुलिस की ओर से गाइडलाइंस भी जारी किए गए थे कि अगर गोरक्षक आपके पास आएँ तो आप क्या कदम उठा सकते हैं।
कई लोगों को इस पर आश्चर्य होगा, लेकिन ये गोरक्षक तो खुलकर मीडिया इंटरव्यू में कहते हैं कि वो पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं लेकिन पुलिस अफ़सर इस बात को नहीं मानते। हमसे कहा गया कि हम एक अन्य अधिकारी से मिलें जिन्हें मामले के बारे में पूरी जानकारी है, और सिर्फ़ वो ही मीडिया से आधिकारिक तौर पर बात करेंगे लेकिन उनसे हमारा संपर्क नहीं हो पाया।
मीडिया रिपोर्टों की मानें तो कई गोरक्षक मिडिल क्लास परिवारों से होते हैं और आपस में वॉट्सऐप की मदद से जानकारियां बांटते हैं और लोगों को जुटाते हैं।
क्या इन गोरक्षकों का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंध है?
गुजरात आरएसएस के प्रवक्ता विजयभाई कहते हैं कि उनका संगठन इस घटना की निंदा कर चुका है और उनकी टीम पहले ही इलाके का दौरा कर चुकी है। वो कहते हैं, “गोरक्षा सैद्धांतिक बात है, हम उसका समर्थन करते हैं। संघ के लोग जाकर ऐसा करते हैं, ऐसा नहीं है। हम जब भी बात करते हैं तो कायदे के दायरे में रहकर बात करते हैं।”
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव शाह कहते हैं कि इस मुद्दे के उठने से स्थानीय मुसलमान ख़ुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे पूरी बात सामने आएगी और उनकी चिंताओं पर प्रशासन, मीडिया का ध्यान जाएगा।
डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं। इससे सोशल डायरी का सहमत होना आवश्यक नहीं।
विनीत खरे
बीबीसी संवाददाता, अहमदाबाद
साभार बीबीसी हिंदी से