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तो आखिर कौन है मालेगांव का गुनहगार?- रविश कुमार

तो आखिर कौन है मालेगांव का गुनहगार?- रविश कुमार

26 नवंबर 2008 की रात मुंबई में जब आतंकी हमला हुआ तब महाराष्ट्र एटीएस के चीफ ज्वाइंट कमिश्नर हेमंत करकरे मोर्चा संभालने सड़क पर निकल गए। उनके ओहदे के हिसाब से वो दफ्तर में बैठकर रणनीति बना सकते थे लेकिन हेमंत करकरे ने बाहर आकर सामना किया और शहीद हो गए।
एंटी टेरर स्क्‍वाड के मुखिया का पद किसी को भी नहीं मिल जाता है। काबिल और पेशेवर अफसर ही वहां तक पहुंचता है। महाराष्ट्र पुलिस में हेमंत करकरे की अपनी साख रही है। हेमंत करकरे की जांच के आधार पर दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के सदस्यों को मालेगांव धमाके में गिरफ्तार किया गया था। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य लोगों तक हेमंत करकरे की जांच नहीं पहुंचती तो देश में हिन्दू आतंकवाद के जुमले पर इतना राजनीतिक घमासान नहीं होता।
शुक्रवार को इसी मामले में NIA ने जब अपना चार्जशीट पेश किया तो कइयों को लगा कि हेमंत करकरे की जांच को ही संदिग्ध बना दिया गया है। क्या ऐसा अफसर जिसने अपनी जान की परवाह तक नहीं की वो ऐसी जांच करेगा जिससे आतंकवाद की एक ऐसी थ्योरी हवा में तैरने लगेगी जिस पर कोई यकीन करने के लिए तैयार नहीं है। महाराष्ट्र में पुलिस कवर करने वाले पत्रकार बताते हैं कि हेमंत करकरे जांच पूरी कर कई दिनों तक इंतज़ार करते रहे ताकि कोई जल्दबाज़ी न हो जाए। वो फूंक फूंक कर कदम रख रहे थे ताकि उनकी जांच सवालों के घेरे में न आ जाए। हेमंत करकरे ने जांच का काम संभालते ही टीम से पूछा था कि सिर्फ धर्म के आधार पर जांच क्यों हो रही है। किसी और लाइन पर जांच क्यों नहीं हो रही है।
हेमंत करकरे की साख न होती तो मुंबई के गोरेगांव में करकरे के नाम पर एक पार्क नहीं होता। पुणे में भी एक पार्क है। 2010 में मालेगांव की एक सड़क का नाम भी हेमंत करकरे के ऊपर रखा गया है। 2009 में बिहार की राजधानी पटना में भी एक सड़क का नाम हेमंत करकरे रोड रखा गया है। चेन्नई की एक संस्था भी हेमंत करकरे के नाम पर पुरस्कार देती है। हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने भी अपनी मौत के बाद शरीर के सारे अंग दान दे दिये थे। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने जब एक करोड़ का इनाम देने की घोषणा की थी तब हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने अस्वीकार कर दिया था और किसी भी राजनेता से मिलने से इंकार कर दिया था।
मालेगांव धमाके मामले में चार्जशीट पेश करते हुए NIA के महानिदेशक शरद कुमार से जब पत्रकार ने पूछा कि एनआईए पहले तो मालेगांव धमाके के आरोपियों का विरोध करती रही है। क्या अब उसने अपना स्टैंड बदल लिया है। तो उन्‍होंने कहा, ‘जब तक हमारी जांच पूरी नहीं हो गई थी तब तक हमें एटीएस की जांच पर निर्भर होना पड़ा था। अब हमने जांच पूरी कर ली है। इसलिए हमने अंतिम चार्जशीट दायर कर दी है।’
समाचार एजेंसी पीटीआई ने एनआईए चीफ का यह बयान प्रकाशित किया है। हेमत करकरे की टीम ने साध्वी प्रज्ञा और पांच अन्य के ख़िलाफ़ कुछ तो सबूत जुटाये होंगे तभी तो वो इतना आगे तक गए। सात साल से साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित जेल में हैं। क्या यह कह देना काफी है कि पर्याप्त सबूत नहीं है। क्या यह नहीं बताया जाना चाहिए कि सात साल तक जेल में रखने के पीछे किस तरह सबूतों से छेड़छाड़ हुई। यह मामला तमाम कोर्ट की निगाह से भी गुज़रता रहा है। वो मोटरसाइकिल जो साध्वी प्रज्ञा के नाम पर थी और जिस पर धमाके हुए थे वो बात कहां गई। इसी आधार पर आरोप लगा। साध्वी का कहना था कि उनकी गाड़ी दो साल से सहकर्मी इस्तमाल कर रहा था इसलिए उनका रोल नहीं है। एजेंसी की दलील थी कि सहकर्मी आपके साथ काम कर रहा है। गाड़ी यहां तक आई है उसके बीच में कुछ लोग हैं जिनकी हत्या हो गई है। इन सब बातों पर विस्तार से तभी कहा जा सकता है जब चार्जशीट में क्या लिखा है आप जान पायेंगे। लेकिन क्या एनआईए ने दक्षिण पंथी संगठन अभिनव भारत को आरोप मुक्त कर दिया है। क्या एनआईए ने लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को आरोप मुक्त कर दिया है।
अभी भी दस लोगों के ख़िलाफ कथित रूप से आरोप बरकरार हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के ख़िलाफ़ बारूद सप्लाई करने, बम रखने और साज़िश के आरोप अब भी हैं। 2006 और 2008 के अलग-अलग मालेगांव धमाको के आरोपियों में दो नाम एक से हैं। एनआईए मानती है कि ये दो लोग इन धमाकों में कथित रूप से सक्रिय थे। दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के सदस्यों के नाम इस आरोप पत्र में भी हैं।
साध्वी प्रज्ञा और पांच के ख़िलाफ़ मकोका हटाया गया है क्योंकि मकोका लागू करने के सबूत नहीं मिले है। तो क्या इससे जांच की दिशा बदल गई या सिर्फ साध्वी प्रज्ञा को राहत पहुंचाई गई क्योंकि विपक्ष उनके बीजेपी और संघ के नेताओं से रिश्ते के कारण संघ को भी घसीट लेता था। पिछले साल से ही मीडिया के ज़रिये संकेत मिल रहे थे कि साध्वी प्रज्ञा को राहत मिल सकती है। चार्जशीट दायर होते ही कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एनआईए का नाम नमो इंवेस्टिगेटिव एजेंसी बना दिया जिसका काम भाजपा समर्थकों को क्लीन चिट देना रह गया है। रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि मोदी जी मालेगांव की जांच करने वाले हेमंत करकरे की सत्यनिष्ठा पर सवाल खड़ा कर उनकी ईमानदारी को धूमिल मत कीजिए। केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि हम सही को छोड़ेंगे नहीं, ग़लत को फंसायेंगे। बीजेपी ने भी आरोप लगाया कि यूपीए ने कई लोगों को बेवजह फंसाया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अभियोजन पक्ष के वकील यानी सरकारी वकील अविनाश रसाल ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि चार्जशीट दायर की जा रही है। मैं दुखी हूं और इस्तीफा दे सकता हूं। अब उन्होंने इस्तीफे से इंकार किया है और कहा है कि जिस तरह से जूनियर सरकारी वकील को आगे करके अदालत में चार्जशीट पेश की गई है उससे वो नाराज़ हैं। इससे पहले रोहिणी सानियाल ने भी कहा था उनके ऊपर दबाव है कि एनआईए के कुछ अफसर उनसे कह रहे हैं कि वे इस मामले में धीमा चलें। तब काफी हंगामा हुआ था। हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन ने पिछले साल जुलाई में उनसे बात की थी। शुक्रवार को उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया लेकिन उनके इस इंटरव्यू को आप देख सकते हैं। आसान अंग्रेज़ी में है। कैसे इस मामले की एक सरकारी वकील सब कुछ होता हुआ देख रही थी। रोहिणी सानियाल शुरू से इस केस से जुड़ी रही हैं। तब भी जब महाराष्ट्र एटीएस इसे देख रही थी और तब भी जब एनआईए ने 2011 में इसे अपने हाथ में लिया था।

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