यह दौर वफादारो का है, इमानदारी की कोई कीमत नहीं
वफादार चढ़ते पायदान पर, इमानदार के हिस्से में सिर्फ तारीफ़ की भरमार
यह दौर ऐसा दौर है जहां सिर्फ वफादारो की कीमत बढ़ी हुई नजर आती है. उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो कुत्ता वफादार होता है तो उसकी कीमत लाखो करोडो में होती है, उसको अपने साथ बैठाकर खाना खिलाया जाता है, बच्चे की तरह देखभाल की जाती है. वहीँ दूसरी तरफ अपने घर का नौकर हो तो उसको मैले और फाटे कपडे, जमीन पर बैठकर खाना, चाँद सिक्को की तनखा, दि जाती है और कहा जाता है हमारा 'रामलाल' (काल्पनिक नाम) बहुत इमानदार है हमारे पास 25/30 साल से है. जैसा नौकर का हाल वैसा ही 99% संगठन, पार्टी, सोसायटी में कार्यकर्ताओं का हाल होता है. और हो रहा है.
जब वफादारो की बात आती है उस जगह किसी प्रकार की जांच होती है ना पूछताछ होती है. वफादारो को मुख्य पदों पर लिया जाता है. वफादारो में एक ख़ास बात होती है उनके पास चापलूसी करने की टैक्ट बढ़िया होती है ऍम आदमी हो या कलाकार यह काम नहीं कर सकता. इसीलिए वफादारो का भाव बढ़ा हुआ है.
जब बात इमानादारो की आती है तब सिर्फ उसके इमानदारी की तारीफे की जाती है बस. इसके अलावा कुछ नहीं. वह शुरुआत में जैसा था आखिर तक वैसा ही रहता है. क्यों की वह इमानदार होता है. और उसी को इमानदारी कहते है. और आखिर जीत इमानदारी की ही होती है. लेकिन अफ़सोस इस बात का होता है की इमानदार उस वक्त तक ख़त्म हो चुका होता है.